..

महिला साहित्यकार और समाज सेवा सम्मान से किया अलंकृत

राष्ट्रीय महिला दिवस-2024 के अवसर पर राष्ट्रीय कवि संगम, हिमाचल द्वारा साहित्यिक लेखन, समाज सेवा और कला संस्कृति के प्रसार-प्रचार में उत्कृष्ट योगदान के लिए हिमाचल प्रदेश की महिला साहित्यकारों और महिला समाज सेविकाओं को राज्य स्तरीय महिला साहित्यकार और समाज सेवा सम्मान से अलंकृत किया गया। यह कार्यक्रम सप्त सिंधु परिसर देहरा 2 हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में 9 मार्च 2024 को आयोजित हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि डॉक्टर संजीत सिंह ठाकुर अधिष्ठाता समाज विज्ञान संकाय हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय और कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कवि संगम हिमाचल अध्यक्ष डॉ संदीप शर्मा ने की। सम्मान समारोह में विशेष अतिथियों में शक्ति चंद राणा प्रभारी राष्ट्रीय कवि संगम, युद्धवीर टंडन उपाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम हिमाचल, विकास गुप्ता अध्यक्ष चंबा, प्रभात राणा संरक्षक चंबा, उदयवीर भारद्वाज संरक्षक कांगड़ा, रजनीश धवाला विशेष रूप से उपस्थित रहे। 

साहित्य, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डॉ. शशि पूनम हमीरपुर, कमलेश सूद - पालमपुर, सुरेश लता अवस्थी, पालमपुर, अनीता भारद्वाज, बैजनाथ, उषा कालिया, कांगड़ा, अरुणा व्यास पालमपुर, अनु ठाकुर, मंडी, पूजा सूद = डोगर, शिमला, विजय कुमारी सहगल बिलासपुर, अर्चना सिंह, कांगड़ा, कल्पना गांगटा, शिमला, मीना चंदेल = बिलासपुर, उपासना पुष्प, डलहौजी, ललिता कश्यप, बिलासपुर, रविंद्रा - कुमारी, पालमपुर, रुचिका परमार कांगड़ा, सुनीता कौल कांगड़ा, मंजू शर्मा बैजनाथ, डॉ प्रिया शर्मा कांगड़ा, डॉ श्वेता शर्मा कांगड़ा, सुमन बाला कांगड़ा, डॉ सत्येंद्र डोहरू कांगड़ा, डॉ स्नेह लता नेगी किन्नौर, अरुणा भारद्वाज धर्मशाला, कांति सूद धर्मशाला, - आशा शर्मा हमीरपुर, प्रो निरूपमा सिंह, सरोज परमार पालमपुर, मोनिका सिंह डलहौजी, रीना भारद्वाज शिमला, डॉ. सपना नेगी किनौर, उमा ठाकुर नदैक शिमला, संतोष शर्मा ऊना, संतोष कालरा सोलन, मनु विनीत शर्मा मंडी, मंजू सूर्यवंशी चंबा, डॉ कविता बिजलवान चंबा को सम्मानित किया गया।

कविता - नीलम शर्मा अंशु



1.

तू किसी को ख़्वाब की मानिंद
अपनी नींदों में रखे ये रज़ा है तेरी
पर यहां किस कंबख्त को नींद आती है ?
अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैं
कभी मुझसे जुदा जो नहीं होते!
टपक ही पड़ते हैं
भरी महफि़ल या तन्हाई में
कहीं भी, कभी भी
बेमौसम बरसात की तरह।

2.

ये हो न सका !
चाहा तो था बहुत
कि दिल में नफ़रत का गुबार
भर जाए तुम्हारे प्रति
पर जहां पहले से ही
मुहब्बत पाँव पसारे बैठी थी
वहाँ चाहकर भी ये हो न सका
मुझे माफ़ कर देना, ऐ दिल !
मैं दिमाग़ की सुन न सका
दिल और दिमाग़ के द्वन्द्व में
ये हो न सका
चाहा तो था बहुत......

3.

कैसा लगता है.......

मुझे पता है कैसा लगता है.......
जब  सब कर रहे होते हैं इंतज़ार
बड़ी बेसब्री से, रविवार की शाम।
कब शाम हो और मेरी आवाज़
लरज़ कर पहुंचे उन तक
हवाओं की मार्फत/
हवाओं पर होकर सवार।
मुझे यह भी पता है
कैसा लगता है जब
शहर में बारिश, आंधी-तूफान का
नियमित दौर जारी हो।
यह भी कि जब आप घंटों तक
अपने सुनने वालों का मनोरंजन करें,
अच्छे-अच्छे नगमें सुनाएं।
कैसा लगता है.....
और फिर घर वापसी के वक्त
मौसम की बेवफाई के कारण
यातायात के साधन भी
धोखा दे जाएं,
विशेषकर शहर की धुरी मेट्रो।
मेट्रो के निकट पार्किंग में धन्नो
इंतज़ार करती रहे और आप
उस तक पहुंच ही न पाएं
धन्नो तक पहुंचने में ही
घड़ी की सुईयां 8 से 10 पर पहुंच जाएं
और उस तक पहुंचते ही
वो मात्र 15 मिनटों में घर पहुंचा दे
रश्क होता है धन्नो की वफ़ा पर
दिल रोता है अन्य साधनों की बेवफ़ाई पर।
                                                
4.

आई बैसाखी

आज फिर आई है बैसाखी
दिन भर चलेगा दौर
एस एम एस, ईमेल, फेस बुक पर
बधाई संदेशों का....
याद हो आती है
इतिहास के पन्नों में दर्ज
एक वह बैसाखी जब
दशमेश ने 1699 में
जाति-पाति का भेद-भाव मिटा
मानवता की रक्षा खातिर
सवा लाख से एक को लड़ा
नींव रची थी खालसा पंथ की
शत-शत नमन, शत-शत वंदन
दशमेश के चरणों में।
क्या सचमुच आज
हर्षोल्लास का दिन है?
ऐसे में जब याद हो आती हो
इतिहास के पन्नों में दर्ज
1919 की वह खूनी बैसाखी
जब जलियांवाले बाग में
हज़ारों बेगुनाह, निरीह, निहत्थी ज़िंदगियां
बर्बरता और क्रूरता का शिकार हुईं।
उन परिजनों तक
कौन पहुंचाएगा संवेदना संदेश
शत-शत नमन, वंदन उनकी अमर शहादत को
जिसने रखी थी नींव इन्क़लाब की।

5.

इस धरा को जन्नत बनाएं हम
इक बूटा मुहब्बत का लगाएं हम
महका कर हर तरफ प्यार की खुशबू
मिटाए नफ़रतों का ज़हरीला प्रदूषण
आओ इस धरा को जन्नत बनाएं हम

न तेरी न मेरी हो सबकी ज़मीं ये
न तेरा न मेरा हो सबका चमन ये
हो खुशनुमा, हरियाला, प्यारा सा वतन ये।
आओ इस धरा को ज़न्नत बनाएं हम
इक बूटा मुहब्बत का लगाएं हम।

डॉ. शंकर वसिष्‍ठ की पुस्‍तकें

 डॉ. शंकर वसिष्‍ठ की पुस्‍तकें 






सुबकते पन्नों पर बहस : एक सार्थक संवाद

  सुबकते पन्नों पर बहस   :  एक
सार्थक संवाद

कवि-आलोचक डॉ. अनिल पांडेय ने सुबकते पन्नों पर बहस की कविताओं के माध्यम से समकालीन हिंदी कविता पर जो आलोचनात्मक टिप्पणियां दी हैं वे सुबकते पन्नों पर बहस के कवि  अनुज देवेंद्र धर के लिए तो निसंदेह उत्साहवर्धक होंगी ही -कविता के मर्मज्ञ पाठकों के लिये भी लाभप्रद होंगी जो साहित्य के इस दमघोटू माहौल में श्रेष्ठ कविताओं की तलाश करते रहते हैं। दिल की गहराइयों से आपका आभार डॉ अनिल पांडेय ।

अपने इस संवाद में कवि देवेंद्र धर की कविताओं पर  टिप्पणी दर्ज करते हुए
डॉ. अनिल पांडेय कहते हैं:...ऐसी बहुत-सी कविताएँ हैं देवेन्द्र धर के पास जिनको आप मजबूत कविताएँ कह सकते हैं...यह संग्रह अमूमन सुबकते पन्नों पर बहस जो शीर्षक है उसको इतनी सार्थकता के साथ अभिव्यक्त करता है
, इतनी सार्थकता के साथ मजबूती देता है कि आप कल्पना नहीं कर सकते|"  
अनिल  पांडेय जी ने गांव अब लौट जा कविता से अपना संवाद प्रारंभ किया।संग्रह की एक सशक्त कविता इंतज़ार पर भी इस संवाद में चर्चा की है।कविता की अंतिम पंक्तियों- हम जानते हैं/बीज हैं हम फिर उगेगें/बस मौसम और खाद का इंतजार है-पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आपने कहा है:"बस मौसम और खाद का इंतजार है और ये कि बीज हैं

हम फिर उगेंगे यह एक कविता की सबसे मजबूत सम्भावना है कि जो बार-बार दबाए कुचले मारे जाने के बाद भी उग आने और अपनी उपस्थित दर्ज करवाने के लिए वह संकल्पित है और प्रतिबद्ध| एक और कविता मैं- वो गीत नहीं लिखूंगा- पर डॉ पांडेय का महत्वपूर्ण व्यक्त है:  

"...कवि जो कहना चाहता है या लिखना चाहता है वह मजबूती के साथ लाता है|
उसको लय से नहीं लेना देना, उसको तुकबंदियों से नहीं लेना-देना और सच में जिसको आप लोकप्रिय कहते हैं...लोकप्रिय होना एक अलग बात है...लोकहित में होना एक अलग बात है| छंदबद्ध और छंदमुक्त के बीच संघर्ष और लड़ाइयों की जो वजह है और लोकप्रियता और लोकहित की भी तो लोकप्रिय कवि नहीं होना चाहता| कवि अगर पर्दे के पीछे भी है और अगर लोकहित में मजबूत अभिव्यक्ति दे रहा है लोकप्रिय ना भी हो तो उसे कोई
अपेक्षा नहीं है
| "

आपका  कवियों और प्रकाशकों को  निम्न संदेश वस्तुतः अत्यंत महत्वपूर्ण है: "...प्रकाशक भी यदि अपनी ज़िम्मेदारी को ठीक से समझे और कवि...जो महानगरों तक सीमित हो जा रहे हैं वह अगर गाँव में बढने और पहुँचने का ख्व़ाब पालें जैसे एक समय बिसारती हुआ करते थे गाँव में जो चूड़ियाँ, कंगन वगैरह बेचते हैं, अगर उस तरीके से ये कविता लेकर लोगों को सुनाने के लिए

निकले तो मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये ऐसी कविताएँ हैं जो एक मजबूत नींव डाल सकती हैं परिवर्तन और बदलाव की ।

परिवर्तन और बदलाव अचानक नहीं आते ये धीरे धीरे आते हैं, धीरे धीरे कार्य करते हैं धीरे धीरे लोगों की चेतना में प्रवेश करते हैं और धीरे धीरे लोग अपने घरों और महलों को छोड़कर सडकों पर आते हैं| यह शुरुआत भी कवियों को करना पड़ेगा| गीत ऐसा लिखना पड़ेगा कि उससे आन्दोलन और क्रांति की आवाज़ आए|"

     साभार  

खाली भरे हाथ का विमोचन

 

सोलन जिला के साहित्‍यकार राम लाल वर्मा राही की
पुस्‍तक खाली भरे हाथ का विमोचन हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्‍यपाल श्री शिव प्रताप शुक्‍ल ने आज
किया। पुस्‍तक में 78 बोध कथाएं है । इन बोध कथाएं को आचार्य जगदीश चन्‍द्र मिश्र ने
हिन्‍दी में लिखा है और राम लाल वर्मा राही ने इसका पहाड़ी बोली क्‍यौंथली में अनुवाद किया है।  
 पुस्‍तक प्रेरक बोध कथाओं से परिपूर्ण है। पुस्‍तक
पठनीय और संग्रहणीय है।